चिंता को खत्म करने के सारे प्रभावी तरीके यहां मिल जाएंगे

सेहतराग टीम

आज के समय में अधिकतर लोग चिंता में रहते हैं। क्योंकि आधुनिक समय में बदलते परिवेश और रहन-सहन के तरीके से कोई ना कोई तनाव लोगों में रहता ही है। चिंता एक अप्रिय स्थिति है। इसमें लोगों को अक्सर शारीरिक संवेदन जैसे घबराहट, उल्टीछाती में दर्द, सांस की कमी अथवा तनाव युक्त सिरदर्द भी संबद्ध होते हैं। चिंता तनाव की एक सामान्य प्रतिक्रिया है। यह कार्यालय में एक तनावपूर्ण स्थिति के साथ निपटने में मदद करती है, किसी परीक्षा के लिए अधिक अध्ययन करने, किसी महत्त्वपूर्ण भाषण पर ध्यान केंद्रित रखती है। सामान्य तौर पर, यह विभिन्न परिस्थितियों का सामना करने में मदद करती है लेकिन जब चिंता दैनिक स्थितियों का अत्यधिक व तर्कहीन भय बन जाती है, तो यह व्यक्ति को निष्क्रिय करने वाला रोग बन जाती है।

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चिंता के लक्षण

  • घुटन जैसी संवेदना तथा श्वास की कमी।
  • अत्यधिक तेज हृदयगति, धीमी हृदय गति, घबराहट, छाती का दर्द।
  • कण्ठ में बाधा और निगलने में कठिनाई।
  • अत्यधिक पसीना आना।
  • कंपन अथवा थरथराहट।
  • सिर, चेहरे, गर्दन अथवा कंधे में दर्द अथवा उनका सुन्न होना।
  • अपच, अम्लिकोद्गार, कब्ज, अतिसार।
  • यौनिक रोग
  • मुंह सूखना
  • अनिद्रा
  • नियंत्रण खो देने का भय
  • आक्रामकता अथवा आत्महत्या करने की प्रवृति

चिंता के कारण

  • चिंता का कारण को पूरी तरह से समझा नहीं जा सका है। शोध यह बताते हैं कि यह कई कारणों का सम्मिलित रूप हो सकता है।
  • मस्तिष्क के उस भाग की अति सक्रियता जो भावनाओं और व्यवहार के लिए जिम्मेदार है।
  • सेरेटोनिन और नोराड्रेनेलिन जैसे मस्तिष्क के रसायनों में असंतुलन जो चिंता के नियंत्रण और नियमन में शामिल हैं।
  • अनुवांशिकता जींस जो आपको अपने मातापिता से मिलते हैं- यदि आपके कोई निकट संबंधी इस अवस्था से ग्रस्त हैं तो आपको चिंता का विकार होने की संभावना पांच गुना अधिक होती है।
  • घरेलू हिंसा, बाल शोषण अथवा पीड़ा जैसी तनावपूर्ण और अवसादयुक्त परिस्थितियों का इतिहास।
  • दीर्घकालीन पीड़ायुक्त परिस्थिति, जैसे कि आर्थराइटिस, नशे अथवा शराब के दुरूपयोग का इतिहास।

मनोवैज्ञानिक से चिंता को कैसे कम करें

स्वयं सहायता:

व्यायाम अथवा सहायक समूह में दूसरों से बातें करके एक व्यक्ति अपने लक्षणों में सुधार करने में सक्षम हो सकता है।

उपबोधन:

इसमें किसी उपबोधक से अपनी समस्याएं बताना शामिल है, जो व्यक्ति क्या करना चाहता है और वह अपने लक्ष्य कैसे प्राप्त कर सकता है, इसमें सहायता कर सकता है।

संज्ञानात्मक व्यवहारात्मक चिकित्सा:

संज्ञानात्मक चिकित्सा में चिंता के पीछे के कारण का आकलन करना शामिल है-यह इस विचार पर आधारित है कि असामान्य सोच असामान्य प्रतिक्रिया में बदल जाती है।

मेडिसिन:

औषधियाँ, अल्पकालिक तनाव संबंधी चिंता से मुक्त करने में सहायक हो सकती हैं। हालांकि, उन्हें लंबे समय तक नहीं लिया जाना चाहिए क्योंकि उनकी आदत हो जाने का खतरा है।

रिलैक्सेशन:

विभिन्न प्रकार की रिलैक्सेशन चिकित्सा पद्धतियां उपलब्ध हैं।

कॉम्प्लिमेंटरी चिकित्सा: 

हालांकि चिंता के उपचार हेतु अनेक प्रकार की अनुपूरक चिकित्सा पद्धतियां मौजूद हैं, कोई भी संपूर्ण रूप से कारगर साबित नहीं हुई और इनके विपरीत प्रभाव भी हो सकते हैं।

भौतिक रूप से चिंता दूर करें

  • व्यायाम तनाव, चिंता और व्यग्रता मुक्त करने में सहायक हो सकता है। शारीरिक गतिविधि के माध्यम से अत्यधिक नकारात्मक भावनाओं तथा एड्रेनिल को मुक्त करने से एक व्यक्ति विश्रांति और अधिक शांत अवस्था तक पहुंच सकता है।
  • चिंता और तनाव से निबटने के लिए व्यायाम एक अच्छा माध्यम हो सकता है।
  • यह तनाव के प्रति प्रतिरोधक के रूप में कार्य करता है और इस प्रकार हृदय और रक्तवाहिकाओं तथा प्रतिरोधक तंत्र को तनावपूर्ण परिघटनाओं के परिणाम से रक्षा करने में सहायक हो सकता है।
  • व्यायाम, अपने प्रत्यक्ष भौतिक प्रभावों तथा तंत्रिका तंत्र पर शरीरक्रियात्मक प्रभाव दोनों के माध्यम से चिंता को उन्नत करने में सहायक है। यह प्रतिदिन की चिंताओं से दूर करता है तथा सकारात्मक भावनाओं की बढ़ाने में मदद करता है।

चिंता को कम करने वाले पोषण 

  • परिष्कृत, श्वेत आटा और शर्करा के उत्पाद व प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थ तन से विटामिन-बी अवशोषित कर लेते हैं। यह शरीर को कमजोर बनाता है और चिंता को बढ़ावा देता है।
  • मीठे पदार्थ विशेषकर हानिकारक हैं, क्योंकि इनका पाचन रक्त शर्करा में नाटकीय कमी का कारण बनता है जिसे भययुक्त चिड़चिड़ेपन के रूप में अनुभव किया जा सकता है।
  • स्वस्थ, संपूर्ण आहार ग्रहण करें जिसमें ताजी सब्जियाँ व फल, पूर्ण अनाज, मेवे इत्यादि शामिल हों। फल और सब्जियाँ बिना पकाए जैसे सलाद के रूप में ग्रहण की जाएँ तो अधिक बेहतर होगा।
  • गर्म दूध में शहद डालकर पीना, तंत्रिकाओं पर शांतिदायक प्रभाव डालता है।
  • शराब, कैफीन और शर्करा से बचें क्योंकि यह चिंता की स्थिति और बिगाड़ देते हैं।

चिंता को कम करने के लिए प्रभावी योग

उपचार की दिशा अतिसक्रिय मानसिक अवस्था को शांत करने की होनी चाहिए। जिन यौगिक अभ्यासों को करने की सलाह दी जाती है वह इस प्रकार हैं-

षट्कर्म क्रिया- जलनेति, सूत्रनेति, कपालभाति (धीरे धीरे)

सूर्यनमस्कार- रोजाना सूर्य नमस्कार करने से मानसिक शांती मिलती है। 

यौगिक सूक्ष्म व्यायाम और स्थूल व्यायाम- मेधाशक्तिविकासक क्रिया, स्मरणशक्तिविकासक क्रिया, बुद्धि तथा धृति शक्ति विकासक क्रिया, उध्र्वगति।

योगासन- ताड़ासन, कटिचक्रासन, पवनमुक्तासन, सर्वांगासन, सरल मत्स्यासन, गोमुखासन, वक्रासन, अर्धमत्स्येंद्रासन, उष्ट्रासन, शशकासन, पश्चिमोत्तानासन, मकरासन, भुजंगासन, धनुरासन, शवासन।

प्राणायाम- नाड़ीशोधन, उज्जायी, शीतली/शीत्कारी और भ्रामरी

ध्यान- श्वास के प्रति सजगता

सावधानियां

  • अत्यधिक तीव्र श्वसन से बचना चाहिए।
  • स्थायी रूप से दुखी, बेचैन अथवा खालीपन का भाव।
  • आशाहीनता, नकारात्मकता का भाव।
  • ग्लानि, महत्त्वहीनता, असहायता का भाव।
  • रूचि का समाप्त होना अथवा शौक अथवा अन्य गतिविधियों में रूचि का समाप्त होना जिसका कभी आनंद लिया जाता था।
  • ऊर्जा में कमी, थकान, और भीतर भीतर घुलना।
  • एकाग्रता, स्मरण करने में, निर्णय लेने में कठिनाई का अनुभव।
  • नींद न आना, सुबह नींद का खुल जाना अथवा अधिक सोना।
  • भूख में अंतर आना और भार में परिवर्तन।
  • मृत्यु अथवा आत्महत्या के विचार, अथवा आत्महत्या के प्रयास।
  • चिड़चिड़ापन, बेचैनी।

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